Wednesday 14 March 2018

एक्सीडेंट:- एक रहस्य कथा

एक्सीडेंट : एक रहस्य कथा- अनुराग कुमार ‘जीनियस’

श्री अनुराग कुमार जी लिखित ‘एक्सीडेंट : एक रहस्य कथा’ सूरज पॉकेट बुक्स, ठाणे (महाराष्ट्र) द्वारा प्रकाशित है।

सूरज पॉकेट बुक्स से श्री अनुराग कुमार जी का यह प्रथम उपन्यास है और मैंने भी श्री अनुराग कुमार जी को पहली बार इसी उपन्यास में पढ़ा है। इसके पूर्व श्री अनुराग कुमार जी का ‘एक लाश का चक्कर’ तुलसी पेपर बुक्स, मेरठ से प्रकाशित हो चुका है, वह मैंने नहीं पढ़ा है।

लेखक की कथाकथन शैली मुझे अच्छी लगी, न तो बहुत जटिल वाक्य हैं और न ही अनावश्यक रूप से डाले गए कठिन शब्द। भाषा सरल एवं बोधगम्य है। भाषा के सरल एवं बोधगम्य होने से पाठक का ध्यान जटिल वाक्यों और कठिन शब्दों को समझने में न भटक कर सिर्फ और सिर्फ कहानी पर रहता है।

उल्लेखनीय ये, कि लेखक महोदय ने दृश्यों का वर्णन जिस तरह से कलात्मक परंतु सरल भाषा में किया है, वह दृश्यों में अतिरिक्त रोमांच पैदा कर देता है। जैसे, “कार की हेडलाइट्स की रौशनी से डर कर कुछ देर के लिए अंधेरे ने अपने पांव कुछ समेट लिए..” और “...सड़क पर लहराई कार पुल की रेलिंग तोड़ कर अंधेरे में एनाकोंडा नज़र आ रही नदी में जा समाई।”, इस तरह के प्रयोग अतिरिक्त रोमांच पैदा कर देते हैं।

कहानी अच्छी है, कहानी के बुनने में किसी प्रकार की जटिलता नहीं रखी गई है। साथ ही पात्र भी सीमित हैं, अनेक अनावश्यक पात्र प्रस्तुत कर पाठक को भरमाने का प्रयास भी नहीं किया गया है। बस अघोरानाथ, नागेश और उर्वशी वाले दृश्य मुझे अनावश्यक लगे, क्योंकि कहानी की मुख्यधारा में इनका या इनके साथ घाटी घटनाओं का कोई विशेष महत्व नहीं था।

तो, कहानी ऐसी है कि, सेठ भानुप्रताप जो कि दो एक्सपोर्ट मिलों के मालिक हैं, को घर आए इंस्पेक्टर दुर्गेश से सूचना मिलती है कि उनके छोटे बेटे ऋषभ की एक कार एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई है। घर में उस समय स्वयं सेठ भानुप्रताप, उनका बड़ा बेटा आलोक और आलोक की पत्नी लाली होते हैं। इंस्पेक्टर दुर्गेश द्वारा जो लाश दिखाई जाती है, वह पहचानने लायक न होने पर भी लाश के साथ मिली वस्तुओं के आधार पर परिवारजनों को यह विश्वास करना पड़ता है कि वह लाश उनके ऋषभ की ही है, और परिवारजन उस लाश का अंतिम संस्कार कर देते हैं।
लेकिन ऋषभ तो स्वयं घर आ पहुंचता है, और सभी लोग स्तब्ध रह जाते हैं। दिल्ली से लौटा ऋषभ अपने साथ हुई चोरी की घटना के बारे में बताता है, कि किसी चोर ने उसके सिर पर डंडा मार कर उसे बेहोश कर दिया था और होश में आने पर उसने पाया कि उसका बैग, घड़ी, सोने की चैन व अंगूठी और बनियान व अंडरवियर छोड़ कर बाकी कपड़े तक गायब थे। फिर ऋषभ आगे बताता है कि, एक दोस्त जिसकी शादी में सम्मिलित होने वह दिल्ली गया था, उस दोस्त की मदद से वह बाद में ट्रेन से राजनगर वापस आया है। इससे सबको यही लगता है कि वह लाश उस चोर की थी जो ऋषभ का सामान ले कर भागा था, जिसका एक्सीडेंट हो गया।
परंतु कुछ ही दिनों में ऋषभ की हरकतों से परिवारजनों की खुशी हवा हो जाती है, क्योंकि ऋषभ की अजीबोगरीब हरकतों से घर में सबको यह लगने लगता है कि यह ऋषभ न होकर उसकी जगह आया कोई बहरूपिया है, जिसे किसी विशेष उद्देश्य के साथ उनके घर भेजा गया है। सवाल ये भी उठता है कि क्या किसी दुश्मन ने ऋषभ के बहरूपिये को किसी उद्देश्य के साथ उनके घर में भेजा है?
सेठ भानुप्रताप का बड़ा बेटा आलोक उसी इंस्पेक्टर दुर्गेश की मदद लेने की सोचता है जो ऋषभ की मृत्यु की सूचना ले कर आया था। आलोक की पत्नी लाली पर फ़िदा हुआ इंस्पेक्टर दुर्गेश लाली के करीब आने के लालच में आलोक की बात मान कर मामले की जांच करना स्वीकार कर लेता है।
और यहीं से कईं रोमांचक व हतप्रभ कर देने वाली रहस्यमयी घटनाओं का सिलसिला शुरू हो जाता है। और अंत में एक एक कर सभी रहस्य उजागर होते चले जाते हैं।

श्री अनुराग कुमार जी अपने लेखकीय में कहानी के बारे में दावा करते हैं कि कहानी में जो राज छुपा हुआ है वो अंत से पहले नहीं खुलेगा, और ये चैलेंज है पाठकों के लिए।
तो अनुराग जी, ऐसा है कि पाठकों को चैलेंज उन रहस्य कथाओं में दिया जाना ठीक है जिनमें राज के बारे में कुछ क्लू (संकेत) भी लेखक द्वारा दिये जाते हों। पर आपके उपन्यास का क्लाइमेक्स (चरम) तो हैट में से खरगोश निकाल कर दिखाने जैसा था, जिसमें पाठकों को अपना दिमाग लड़ाने के लिए कोई अवसर ही नहीं था। अंत में पात्रों के बीच वार्तालाप के माध्यम से अचानक रहस्य को उजागर कर दिया गया, इसमें क्लू वाली तो कोई बात ही नहीं थी।
मान लीजिए आपकी कहानी के दो भाग हैं, A व B। यहां B वह भाग है जिसमें पात्रों के आपसी वार्तालाप के माध्यम से रहस्योद्घाटन होकर कहानी का अंत होता है, और A वह भाग है जिसमें आरम्भ से कहानी घटित होती है। आपका B भाग ऐसा है कि यदि इसे पूरा बदल भी दिया जाए तो भी A भाग में किसी प्रकार के संशोधन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
कहने का तात्पर्य ये, कि A भाग में B भाग के बारे में कोई संकेत नहीं हैं। A भाग के समाप्त होते ही B भाग को कहीं भी मोड़ा जा सकता था।
कहानी आरम्भ से ऐसे बुनी हुई होनी चाहिए जिसमें एक ही अंत संभव हो। ऐसा होने पर पाठक को यह परम संतुष्टिदायक लगता है कि इससे अच्छा अंत हो ही नहीं सकता था।

वैसे कहानी में गति अच्छी है, न बहुत तेज न बहुत धीमी। लेखक ने पात्रों के संवाद बोलते समय की भाव-भंगिमाओं और हरकतों का जिस तरह से वर्णन किया है उससे दृश्य अधिक मनोरंजक बन पड़े हैं। संवाद बहुत कलात्मक नहीं हैं, पर कहानी के अनुरूप ही हैं।

आगामी उपन्यासों के लिए श्री अनुराग कुमार जी को अनेकानेक शुभकामनाएं।

मैं ‘एक्सीडेंट : एक रहस्य कथा’ को 6.5/10 अंक देता हूँ।

- समीक्षक
   संदीप नाईक
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