Friday 9 March 2018

वन शाॅट- कंवल शर्मा

श्री कँवल शर्मा जी लिखित “वन शॉट” रवि पॉकेट बुक्स, मेरठ द्वारा प्रकाशित है|

श्री कँवल शर्मा जी को पहली बार मैंने “वन शॉट” में ही पढ़ा है| उपन्यास का शीर्षक अंग्रेजी में है और शैली भी विदेशी अंग्रेजी उपन्यासों जैसी है| “वन शॉट” पढ़ते-पढ़ते मुझे “श्री ली चाइल्ड जी लिखित जैक रीचर श्रृंखला के प्रथम उपन्यास ‘किलिंग फ्लोर” का स्मरण हो आया|

वैसे कहा जा सकता है की श्री कँवल शर्मा जी की शैली अंतर्राष्ट्रीय स्तर की है, यदि इनके उपन्यास अंग्रेजी में अनुवादित किये जाएँ तो विदेशों में भी पसंद किये जा सकते हैं|

श्री कँवल शर्मा जी की कथाकथन शैली रोचक है और उपन्यास मुझे पसंद भी आया| जैसा की मैं हमेशा कहता हूँ, लेखक की कथाकथन शैली यदि सजीव हो तो पढ़ने में आनंद आता है, वर्ना नहीं| लेखक उचित शब्दों व वाक्यों के मध्यम से यदि अपनी कल्पनाएं पाठक के मस्तिष्क में साकार न कर पाए तो कहानी अच्छी होने के बाद भी पाठक उसका आनंद नहीं ले पाता| लेखक वही सफल होता है जो अपने पाठकों को वैसा महसूस करवा दे जैसा वह चाहता है, तभी उसका लेखन सार्थक होता है|
“सर्द दिसंबर की उस घने कोहरे वाली गहरी स्याह रात में एक काली वैन तेजी से उस हाईवे पर दौड़ी जा रही थी…” इन पंक्तियों के साथ श्री कँवल शर्मा जी के “वन शॉट” का आरम्भ होता है, और इन्हीं पंक्तियों को पढ़ते ही पाठक के मस्तिष्क में चित्र उभरते चले जाते हैं| लेखक महोदय कहानी के हर तत्व का भास करवाने में सफल रहे जैसा की वे चाहते थे| कहानी एक मर्डर मिस्ट्री है, जिसमें रहस्य व रोमांच के तत्वों का उचित समावेश है|

विनय रात्रा एक जांबाज रॉ एजेंट है और जॉर्जिया की राजधानी तिब्लिसी में अपने किसी अभियान पर है, उसे सूचना मिलती है की उसके सगे भाई रोहन रात्रा की मृत्यु हो गयी है| सूचना मिलते ही विनय तिब्लिसी से भारत आने के लिए निकल पड़ता है और पहले दिल्ली अपने मुख्यालय और फिर तुरंत राजनगर पहुँचता है, क्योंकि रोहन राजनगर में रह रहा था| राजनगर आते ही विनय का स्वागत ‘वन शॉट’ से होता है जिसमें वह बच जाता है|
राजनगर आकर विनय को पता चलता है की उसके भाई रोहन की मृत्यु संदिग्ध परिस्थितियों में संभवतया ‘वन शॉट’ से हुई है, जिसके आत्महत्या न होकर हत्या होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता| विनय स्वयं ही अपने भाई की मृत्यु के कारणों का, एवं उसके हत्यारों का पता लगा कर उसके हत्यारों को सजा देने की ठान लेता है| रोहन की मृत्यु के सही कारणों का पता लगा कर दोषियों को पकड़ने में राजनगर पुलिस प्रशासन का रवैया सुस्त व असहयोगात्मक होता है, साथ ही राजनगर के रसूखदार व ऊँचे ओहदों पर बैठे लोग विनय की राह में बाधक बनते हैं| पर विनय को अपने विभाग के सहकर्मियों से ‘अन-ऑफिशियल’ सक्रीय सहयोग प्राप्त होता है|

कहानी तो तेज गति से आगे बढ़ने लायक है परंतु अनुचित रूप से लंबे संवादों ने गति को बहुत धीमा किया है| विनय द्वारा पूछताछ करने के दृश्यों में संवाद बहुत ज्यादा लंबे हैं| उदाहरणार्थ, रोहन की प्रेमिका सह्याद्री से और चपरासी उजागर से विनय द्वारा पूछताछ करने के दृश्यों में संवाद अनुचित रूप से लंबे हैं| उपन्यास के आरंभ में विनय और उसके सहकर्मी/मित्र नूर अलदीन से विनय का सामना, यह दृश्य कहानी में जितना महत्त्व रखता है उस हिसाब से इस दृश्य की लंबाई अन्यायपूर्ण है| अंत में ‘सम्यन्तक’ को केंद्र में रख कर लिखा गया सात पृष्ठों का उपसंहार जिसका कहानी से संबंध बहुत थोड़ा है, भी बहुत ज्यादा लंबा है|
लेखकीय पढ़ना हालाँकि आवश्यक नहीं, परन्तु कईं पाठक लेखक की सामान्य विचारधारा जानने या लेखक के बारे में जानने की उत्सुकता में लेखकीय पढ़ते हैं| ‘वन शॉट’ में श्री कँवल शर्मा जी ने कुल चौदह पृष्ठों का लेखकीय लिखा है, जिसमें उन्होंने भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी ‘रॉ' एवं उसके प्रसिद्ध जासूसों तथा उनके कारनामों के बारे में, और विश्वभर की विख्यात जासूसी संस्थाओं और उनके जासूसों के कारनामों के बारे में बताया है| यह जानकारी कितनी ही रोचक या रोमांचक हो, अगर पाठक इतने लंबे लेखकीय को छोड़ कर आगे बढ़ जाये तो ठीक, पढ़ने लग जाये तो पाठक के मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है| मेरे मतानुसार किसी भी प्रकार के लेखकीय के लिए अधिकतम पांच पृष्ठ पर्याप्त हैं|

किसी भी उपन्यास में, दृश्य भले ही ज्यादा हों पर उन दृश्यों में संवाद कम या छोटे हों, तो कहानी की गति तेज हो जाती है और उपन्यास बड़ा होने पर भी पाठक को बोर नहीं करता| ऐसे दृश्य जिनका कहानी से कोई संबंध नहीं है और कहानी को मात्र रोमांचक या मनोरंजक बनाने के लिए डाले गए हों, या ऐसे दृश्य जिनका कहानी में संबंध बहुत थोड़ा हो, लंबे बिलकुल नहीं होने चाहिए| क्लाइमेक्स भी व्याख्यात्मक प्रकार के हो कर बहुत लंबे नहीं होने चाहिए|

श्री कँवल शर्मा जी के ‘वन शॉट' को मैं 6/10 अंक देता हूँ|
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समीक्षा
- संदीप नाईक

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