Monday 28 May 2018

कौवों‌ का हमला- अजय सिंह

कौवों का हमला- अजय सिंह
समीक्षक- संदीप नाइक

                   कौव्वों का हमला  एक बाल उपन्यास है, जिसे श्री अजय कुमार जी ने लिखा है। श्री अजय कुमार जी ने इसे स्वयं ही प्रकाशित करने का फैसला लिया, और इसके लिए उन्होंने अमेज़न किंडल को चुना। किंडल पर उपन्यास का वर्तमान मूल्य ₹99/- है। शीघ्र ही श्री अजय कुमार जी इस उपन्यास को हार्ड कॉपी में भी स्वयं ही प्रकाशित कर नन्हे पाठकों के बीच ला रहे हैं।

उपन्यास के मुखपृष्ठ पर क्लोज़अप में नीले प्रकाश में एक कौव्वे का चित्र है जिसके पीछे बहुत सारे कौव्वे उड़ते हुए दिख रहे हैं। नीले-काले रंग में ऐसा चित्र भय का वातावरण दर्शाता है। मुझे मुखपृष्ठ किसी एक्शन फिल्म के पोस्टर जैसा लगा। कहने का तात्पर्य ये कि मुखपृष्ठ कलात्मक एवं आकर्षक है।

एक लंबे अरसे के बाद मैंने कोई बाल उपन्यास पढ़ा है। उपन्यास पढ़ कर बचपन याद आ गया।

कथाकथन शैली उत्तम है। एक भी ऐसा दृश्य नहीं है जहां बच्चे बोर हो जाएं। श्री अजय कुमार जी को बच्चों की पसंद का पूरा ज्ञान है, वे अच्छी तरह जानते हैं कि कहानी कैसी लिखने से बच्चे उसे मुग्ध होकर पढ़ते जाएंगे। सबसे अच्छी बात यह है कि लेखक ने ऐसी किसी शब्दावली का प्रयोग नहीं किया है जिसका अर्थ समझने में बच्चों को कठिनाई हो। उपन्यास उद्देशित पाठक वर्ग की पसंद व समझ के अनुरूप है।

उपन्यास की एक विशेषता यह भी है कि इसमें दृश्य वर्णन और संवादों का संतुलन बहुत अच्छा है। किसी भी पृष्ठ पर न तो लंबे संवाद हैं और न ही लंबे दृश्य वर्णन। हर पृष्ठ पर संवाद भी हैं और दृश्य वर्णन भी, जिससे न तो दृश्यों का वर्णन कहीं ज्यादा लंबा हुआ है और न ही संवाद। उपन्यास मुझे किसी फिल्म की स्क्रिप्ट की तरह लगा। और लगे भी क्यों न, श्री अजय कुमार जी स्क्रिप्ट लेखन का कार्य भी करते हैं। उनके स्क्रिप्ट लेखन का अनुभव इसमें साफ झलकता है।

तो कहानी ऐसी है कि, उन्नत और आशी अपने मां-बाप के साथ एक सोसाइटी बिल्डिंग के अपार्टमेंट में रहते हैं। उन्नत 7 साल का है और उसकी छोटी बहन आशी 4 साल की है। उन्नत और आशी अपने दोस्त मूलचंद से बहुत प्यार करते हैं, मूलचंद के साथ खेलने का कोई मौका वो नहीं छोड़ते हैं।

उन्नत को जासूसी का शौक है। उन्नत ने आसपास घट रही घटनाओं का विश्लेषण कर उनका सही अर्थ निकालने का गुण भी विकसित कर लिया है। उन्नत के पास एक डायरी है जिसमें वह उसके द्वारा सीखी गईं विभिन्न बातें, जो उसकी तर्कशक्ति बढ़ा कर जासूसी के काम आ सकती हैं, को क्रमांकवार दर्ज करता है और जरूरत पड़ने पर किसी वर्तमान समस्या का हल उन नियमों में ढूंढने का प्रयास करता है। उन्नत अपने पास एक किट भी रखता है, इस किट में उन्नत ने वो सामान शामिल किया है जो उसके अनुसार जासूसी के काम आ सकता है।

एक दिन उन्नत और आशी मूलचंद से बतिया रहे होते हैं। उन्नत देखता है कि पास ही के पेड़ पर लगभग 50 कौव्वे बैठे हुए हैं, पर वे सभी शांत हैं। उन्नत को ये अजीब लगता है। तभी उन्नत देखता है कि कौव्वे एक डाल पर से दूसरी डाल पर उछल-उछल कर नीचे की तरफ आ रहे हैं। उसे दिखता है कि रास्ते के एक ओर से मछली बेचने वाली आंटी सिर पर मछलियों का टोकरा रख कर आ रही है, तो उन्नत सारा मामला समझ जाता है। वह आशी को बताता है कि कौव्वे उन मछलियों पर हमला करने वाले हैं।

उन्नत और आशी चिल्ला चिल्लाकर मछली वाली आंटी को सावधान करने की कोशिश करते हैं। पर मछली वाली आंटी दूर होने के कारण सुन नहीं पाती। और कौव्वे मछलियों पर झपटते हैं।

पर उन्नत और आशी मूलचंद की मदद से कौव्वों को भगा कर मछली वाली आंटी की मछलियां बचाने में कामयाब हो जाते हैं, इसमें उनकी सोसायटी की बिल्डिंग के गार्ड अंकल भी मदद करते हैं। बस मूलचंद कौव्वों के द्वारा चोंच मारे जाने के कारण थोड़ा घायल हो जाता है और कुछ कौव्वे भी घायल हो जाते हैं।

कौव्वे वापस जा कर अपने पेड़ पर बैठ कर अपने सरदार की मौजूदगी में एक मीटिंग करते हैं और तय करते हैं कि हमें बदला लेना है। कौव्वे निश्चय करते हैं कि हमला ऐसा अचानक करेंगे कि दुश्मन संभल ही न पाए।

अब उन्नत, आशी, मूलचंद और इनकी मदद करने वाले गार्ड अंकल पर कौव्वों के हमले का खतरा मंडराने लगता है। वो अनजान होते हैं कि कौव्वों का हमला कब, कैसे और कहां होगा।

हमला करने की कौव्वे क्या योजना बनाते हैं और कैसे उन्नत, आशी और मूलचंद कौव्वों के हमले से निपटते हैं, ये सब बहुत रोमांचित करता है। उपन्यास के एक्शन सीन एक अलग ही थ्रिल पैदा करते हैं।

(उन्नत और आशी को पसंद नहीं की कोई उनके प्यारे दोस्त मूलचंद को ‘बदतमीजी से’ संबोधित करे। इसलिए उन्नत और आशी की भावनाओं को पूरा सम्मान देते हुए, मूलचंद कौन है इसके बारे में मैं सिर्फ इतना ही बताना चाहूंगा कि मूलचंद श्वान जाति का जीव है। उन्नत और आशी के मूलचंद के लिए प्यार का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने मूलचंद नाम भी इंसानों की तरह रखा हुआ है।)

चूंकि ये उपन्यास बच्चों के लिए लिखा गया है तो मैंने इसे पढ़ा भी बच्चा बन कर, और इसीलिए मैं इस उपन्यास का पूरा आनंद ले पाया। कहानी शुरू से अंत तक बांधे रखती है।

संवाद छोटे, सरल, सहज एवं मनोरंजक हैं। कोई संवाद भ्रम की स्थिति पैदा नहीं करता। इससे पूरी कहानी ही बोधगम्य हो जाती है। कहानी की गति मध्यम है, और संवाद भी गति के अनुरूप ही हैं। कहानी की गति बाल उपन्यास होने की दृष्टि से आदर्श है।

मेरी राय में बच्चों के लिए उपन्यास पठनीय है, हार्ड कॉपी में छपने के बाद इस उपन्यास को और अच्छा प्रतिसाद मिलेगा। ‘बाल उपन्यास’ श्रेणी के इस उपन्यास को मैं 7.5/10 अंक देता हूँ।