Tuesday 13 February 2018

खोया- खोया चाँद- ओमप्रकाश राय यायावर

समीक्षा- "खोया खोया चाँद"

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आदरणीय मित्र ओम प्रकाश राय 'यायावर' सर्वप्रथम आपको इस कृति के लिए हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।
आप और आपका उपन्यास अनंत गगन की ऊंचाइयों तक पहुँचें।
हम कोई लेखक तो हैं नहीं और न ही हमारे पास शब्दों का है साथ ही साथ लेखन की कला कुशलता भी नहीं है फिर भी एक छोटी सी समीक्षा पाठक के हैसियत से लिख रहे हैं।
एक खास बात ये भी है दस घंटे अनवरत खोये हुए चाँद को हमने ढूंढा तब कहीं जाकर पचमढ़ी में मिला।
वैसे पूरी की पूरी कहानी भावनात्मक, प्रेम, विरह और प्रेरणादायक तथ्यों से होकर गुजरती है। कथा, कथानक और चरित्र सब का सब सर्वोत्तम है।

पाठक बन कर किसी कहानी को पढ़ने का अपना अलग ही मजा होता है, सभी दृश्यों में स्वयं खोजना , सबकुछ मानो जीवन्त हो रहा है,अपार हर्षोल्लास, कभी प्रेम तो कभी पीड़ा और मन में अनायास चंचलता बनी रहती है।

मैनें सही सुना था जो मजा बनारस में है वो कहीं भी नहीं है, इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं-
दो गज जमीन होगी, एक खुला आसमान होगा।
साथ में आप होंगे और बी एच यू का दिलकश जहान होगा।।
-खोया खोया चाँद

इन पंक्तियों में बनारसीपन, चुहलबाजी, कुछ मटरगश्ती मालूम होती है।

छोटे छोटे अंश में बनारसीपने को जानते हैं -

सदफ और निहाल के इर्द गिर्द कहानी परिक्रमा करती हुई नज़र आयेगी। जहाँ सदफ बहुत ही चंचल, समझदार और मुंहफट मुस्लिम समुदाय की लड़की है वहीं निहाल भोला, बुद्धिमान और ध्यान रखने वाले व्यक्तित्व का व्यक्ति हिन्दू समुदाय से है।

निहाल पी सी एस की तैयारी इलाहाबाद से छोड़ कर बनारस बी एड करने आते हैं और कहते हैं -

ग्रैजुऐशन करने बाद बी एड करना उतना ही जरूरी होता है जितना कि मरने के बाद तेरहीं।
-खोया खोया चाँद

यहां सदफ से उनकी मुलाकात, बात और चुहलबाजी के साथ प्यार भी हो जाता है।
खैर लेखक ने बनारस के प्रसिद्ध दार्शनिक स्थलों का बखूबी वर्णन किया है जैसे अस्सी घाट, गंगा , काशी विश्वनाथ मंदिर इत्यादि, सब कुछ हम ही बता देंगे तो आप उपन्यास पढ़ेंगे ही नहीं।

कवि और लेखक में अन्तर जानना और पहचानना हो तो यायावर जी के द्वारा सदफ का सौन्दर्य वर्णन देखिए।

''हर सवाल का जवाब सवाल नहीं होता,
आसमां काहर चमकता सितारा बेमिसाल नहीं होता।
ये सच है कि मौन सर्वोत्तम भाषण है,
पर हर बार चुप रहना मिसाल नहीं होता।।"

-खोया खोया चाँद

थोड़ी सी बात और उपन्यास पढ़ने के पश्चात मेरा व्यक्तिगत अनुभव कहानी के शुरुआत में बी एच यू कैंपस और छात्रावास में निहाल समेत उनके साथियों की चुहलबाजी, चाय की चुस्कियाँ और मेस पर खाने के चक्कर में लफ्फाजी लाजवाब लगी परन्तु गालियों को शामिल करना मुझे अजीब लगा मतलब बिल्कुल भी पसंद नहीं आया।
सदफ के साथ निहाल के बिताए हुए पलों का भाव पक्ष की दृष्टि से अद्वितीय अद्भुत वर्णन इसके लिए आपको साधुवाद।
अन्तिम बात पूरे उपन्यास की सबसे महत्वपूर्ण पहलू और मेरे दृष्टिकोण से सबसे अहम बात मुहब्बत को जिस्मानी संबंधों बिल्कुल परे एहसासों से जोड़ना बहुत ही खूबसूरत और दिल से अच्छा लगा और मेरे समझ जो निहाल ने किया वो सच्ची मुहब्बत है।

उपन्यास पढ़ते पढ़ते मुझे  जाने कितनी बार रोना 😢 आया, यदि इस कहानी के किरदार वास्तविकता में हैं तो मैं सदफ और निहाल से मिलना चाहूँगी। मेरे मन इन दोनों को लेकर न जाने क्या क्या चल रहा है! मेरे प्रश्नों के उत्तर लेखक के अलावा निहाल व सदफ ही दे सकते हैं।

परम मित्र ओम प्रकाश राय 'यायावर' को ' खोया खोया चाँद ' के लिए हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।
हम आशा करते हैं आप इसी प्रकार अन्य कहानियों को हम पाठकों तक पहुंचा कर हमें अभिभूत करते रहेंगे।

- समीक्षा
अंशिका शर्मा
11/02/2018