एक हसीन क़त्ल- मोहन मौर्य
समीक्षक- शोभित गुप्ता
कभी कभी आप जब कोई कहानी पढ़ रहे होते हैं तो आप यह सोचते हैं, काश यह एक कहानी ही होती पर अंदर ही अंदर आप सोच रहे होते हैं कि ऐसा क्यों बदल गया है समाज! किस दिशा में, और क्यों जा रहा है! क्या यह सब ठीक नहीं हो सकता?
कहने को तो यह नॉवल एक कहानी है पर जैसी घटनाएँ इसमें दिखायी गयी हैं वो हमारे समाज में हो रही हैं और न्यूज़ चैनल्ज़ पर दिखायी जा रही हैं. इस नॉवल ने सोचने पर मजबूर किया है.
नॉवल में कहानी है कुछ VVIPs के 16-18 वर्ष के बच्चों की, जो एक बहुत ही पॉश हाई फ़ाई स्कूल में एक साथ पढ़ते हैं. इनके बीच लव त्रिकोण है, स्पर्धा है जो कि अमूमन किशोर किशोरियों में आजकल आम बात है पर तभी एक क़त्ल हो जाता है जो कि हसीन ना होकर बहुत वीभत्स है झँझोरने वाला है. शक़ की सुई कई किरदारों पर घूमती है, क़त्ल की अलग अलग वजह, अलग अलग विवेचनाएँ हैं. पर असली क़ातिल पर ध्यान अंत में ही जाता है, कम से कम मैं तो क़ातिल का कोई हिंट पहले नहीं पकड़ पाया था.
कहानी दमदार है, थ्रिल सस्पेन्स से भरपूर है. निस्सन्देह लेखक एक उत्तम प्लॉट गड़ने में सक्षम हैं.
उपन्यास में मुझे यह बात बड़ी शिद्दत से खली कि कहानी को विस्तार नहीं दिया गया. पात्रों का चरित्र पूरी तरह उभरकर नहीं आ पाया. मुझे लगता है उपन्यास में कम से कम 50-70 पृष्ठ और जोड़े जा सकते थे, संभवतया, लेखक की सोच थी कि कहीं कहानी अनावश्यक रूप से लम्बी नीरस ना हो जाए और उसकी लय ना बिगड़ जाए. अगर ऐसा था, तो मुझे लेखक की इस सोच से पूरा इत्तफ़ाक़ है. पर अगले उपन्यास में उन्हें इस बात का ख़याल रखना चाहिए कि कहानी को पात्रों के ज़्यादा संवाद के ज़रिए आगे बड़ाया जाए, उनकी भावनाओं को बेहतर से वर्णित किया जाए.
लेखक का यह पहला ही उपन्यास है और उन्होंने यक़ीनन कहानी पर दमदार काम किया है और इस प्रकार के बोल्ड विषय को चुनकर एक अदम्य साहस दिखाया है, जिसके लिए वो बधाई के पात्र हैं. यक़ीनन एक अलग प्रकार का उपन्यास पढ़ने को मिला जो तेजरफ़्तार था, कसी हुई कहानी और बेहतर सस्पेन्स के साथ. यक़ीनन अगर वो इस तरह की नए कलेवर की कहानियाँ लाते रहेंगे तो अपना एक अलग मुक़ाम बनाएँगे।
उपन्यास- एक हसीन कत्ल
लेखक- मोहन मौर्य
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
समीक्षा- शोभित गुप्ता