बनारस टाॅकिज- सत्य व्यास
समीक्षक- बबलु जाखड़
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सत्य व्यास द्वारा लिखित *बनारस टॉकीज़* पढ़कर कुछ अजीब सा ही लगा।
बहुचर्चित होने के बावजूद ये कहा जाए तो ठीक ही होगा कि उपन्यास सामान्य सा ही था, ना कुछ स्पेशल था, ना ज्यादा सस्पेन्स, कुलमिलाकर ऐसा कथानक जिसको पढ़ा तो जा सकता है पर तारीफ के पूल नही बांधे जा सकते, बेशर्ते की उपन्यास में केवल 179 पेज ही होते।
आखिर के 13 पेज में कहानी में कुछ ट्विस्ट बनता है पर वो बनता ही है।
एक ऐसी कहानी जिसमे कोई सस्पेंस नहीं, चुहलबाज़ी भी नहीं, ना कोई हार्ट टचिंग इवेंट, बस बकैती कुछ कुछ है,
कई जगह संवाद भी खूब लंबे व वक्त खाउ ही लगे।
फिर भी ऐसा उपन्यास जिसको पढ़ा जा सकता है, पैसा वसूल हो जाये।
पर जो लोग ऐसा उपन्यास पढ़ने के तमनाई है जो कुछ विशेष हो, कुछ हटकर हो, वो यहां चाहे अपना समय खराब ना करें।
गालियों का भरपूर प्रयोग हुआ है।
फिर भी अच्छा है।
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