Sunday 18 November 2018

प्रेतों का निर्माता- वेदप्रकाश कंबोज

प्रेतों का निर्माता- वेदप्रकाश कंबोज,
समीक्षा- शिखा अग्रवाल, दिल्ली।
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         सबसे पहले तो यही कहना चाहूंगी कि मुझे समीक्षा लिखनी नहीं आती खासकर कम शब्दों में तो बिल्कुल नहीं, यही कारण है कि नावेल पढे 6 हफ्ते हो गए लेकिन अभी तक नहीं दी, अब प्रवीण आजाद जी के कहने पर निष्पक्ष समीक्षा लिखने की कोशिश की है।
         मैंने वेदप्रकाश शर्मा जी के नावेल पढकर अपने पढने की शुरुआत की थी और यही समझती थी कि विजय विकास उनके मौलिक पात्र है, ये तो यही आकर पता लगा कि विजय,अलफंसे काम्बोज जी का पात्र है
     सबसे पहले बात लेखकीय कि तो उसे पड़कर आंखे नम हो गयी, पैसे वही वसूल हो गए, उसमे सर ने ओमप्रकाश शर्मा जी, जवाहर चौधरी जी जैसी हस्तियों के बारे में अपने विचार भी बताए है, उसपे पुराना कवर पेज तो सोने पे सुहागा ही था, ये नावेल 1974 में आया था इसलिए विश्वास करना ही मुश्किल लगा कि उस समय सर मेडिकल साइंस का ऐसा विवरण कैसे कर सके, उस समय इंटरनेट जैसी चीजों का कोई वजूद भी नही था तब माइड चेंजिंग का बिल्कुल नया कांसेप्ट इस नावेल में पड़ने को मिला जो सर की अभूतपूर्व कल्पनाशीलता तो दर्शाता है, विजय, अल्फांसो,   गिल्बर्ट, चीनीचोर, तातारी, कबाड़ी, बन्दर(धनुषटन्कार)और सिंगही जैसे बहुत किरदार पढने को मिले, विजय, कबाड़ी, तातारी की झकझ भी कमाल की है जिन्हें पढकर बरबस ही हँसी आ जाती है, मेरे जैसे नए पाठक को भी जिन्होंने पहले इनका कोई भी नावेल नहीं पढा, नावेल पड़कर पात्रों को समझने में कोई परेशानी नहीं होती, निसन्देह ये नावेल अपने समय का एक मास्टरपीस रहा होगा इसमे कोई दो राय नहीं है।
       रही बात कुछ कमियों की तो मुझे नावेल का साइज कुछ बड़ा लगा, हमें नावेल एक स्टैण्डर्ड साइज में पढने की आदत हो गयी है, इसलिए ये नावेल हाथ मे लेकर कुछ अलग लगा, दूसरी और सबसे बड़ी बात प्रूफ रीडिंग बिल्कुल बेकार थी, बहुत बार ऐसा हुआ कि एक दो शब्द नहीं बल्कि पूरी की पूरी लाइन ही गायब हो गयी, लेकिन शुक्र था कि पढने पे समझ आ रहा था कि दूसरे ने क्या कहा होगा और उसका कहानी पे कोई फर्क नही पड़ रहा था।
   सर को ऐसी रचना देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया और यही उम्मीद है कि आगे भी और जल्द ही हमे ऐसी ही दुर्लभ रचनाये पढने को मिलेंगी।
भूल चूक की माफी के साथ।
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उपन्यास- प्रेतों का निर्माता ।
लेखक- वेदप्रकाश कंबोज
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स- मुंबई
समीक्षक- शिखा अग्रवाल, शाहदरा, दिल्ली

ध्यान दें- इस उपन्यास के सूरज पॉकेट बुक्स के प्रथम संस्करण में ही शाब्दिक अशुद्धियाँ हैं‌, अन्य में नहीं ।


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