Saturday 21 April 2018

रिवेंज- एम. इकराम फरीदी

रिवेंज और इकराम फरीदी के अन्य उपन्यासों पर चर्चा
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Md Ikram Faridi जी अच्छे शब्दों में कोई कथानक लिख सकते हैं। इसे एक अच्छा संयोग कह सकते हैं कि मैंने उनके पाँचों उपन्यास पढ़ लिए। हालिया प्रकाशित उपन्यास 'रिवेंज' एक शानदार फुल स्पीड नॉवेल है।

             'दी ओल्ड फोर्ट' जैसा एडवेंचर इस उपन्यास में भी शुरू से ही बना रहता है। ओल्ड फोर्ट में तो जगह-जगह सस्पेंस खुलता चला गया है लेकिन 'रिवेंज' की ख़ूबी ये है कि इसमें सारे सस्पेंस को लास्ट में ही खोला गया है।

             'दी ओल्ड फोर्ट' और 'ट्रेजडी गर्ल' में जासूस सुभाष चन्द कौशिक बहुत दमदार अंदाज़ में नज़र आया। लेकिन 'ट्रेजडी गर्ल' में जब 'ट्रेजडी गर्ल' को उसका पति 6 महीने तक अपने गुरू की शरण में भेजता है और वहाँ जब 'शुद्धिकरण' की प्रक्रिया से वह गुजरती है तो व्यक्तिगत रूप से जासूस सुभाष चन्द कौशिक पर मुझे बहुत क्रोध आया और उस 'शुद्धिकरण' के लिए मैंने जासूस को ही पूर्णतः दोषी माना। 'दी ओल्ड फोर्ट' में वही सुभाष चन्द कौशिक उस खौफ़नाक किले से सबको बचा लाता है और इंसानियत की भावना को अपनी जासूसी पेशे की भावना से भी ऊपर रखता है।कथानक के अंत में जब वह ठग तांत्रिक बाबा की धुलाई करता है तो उसकी भावना इस बात की गवाही देती है। फिर वही सुभाष चन्द कौशिक 'ट्रेजडी गर्ल' वाले मामले में इतना मतलबपरस्त कैसे हो गया कि उसने 'ट्रेजडी गर्ल' के पति को सारे राज़ बता दिए? अगर वह राज़ नहीं खोलता तब भी सबकुछ सही हो चुका था। सारा केस हल हो गया था। सबलोग ट्रेजडी से बाहर आ चुके थे। 'ट्रेजडी गर्ल' भी अपने अतीत से पीछा छुड़ा चुकी थी। लेकिन जासूस सुभाष की वजह से ही उसे अपने अतीत के अध्याय से नए सिरे से पुनः दो-चार होना पड़ा। हालांकि कथानक के अंत में उसका मुजरिम के सामने लेक्चर बहुत शानदार लगा फिर भी उसके द्वारा राज खोलने को लेकर उत्पन्न हुई नई ट्रेजडी से मैं बेहद ख़फ़ा था। मेरी शिक़ायत बिना कहे ही दूर हो गई प्रस्तुत उपन्यास 'रिवेंज' में...! जब लगातार दो हत्याएँ जासूस सुभाष चन्द कौशिक की ही मौजूदगी में हो जाती हैं और वह कुछ नहीं कर पाता। उसकी सारी धुरंधरी फ़ना हो जाती है क्योंकि कातिल ने बाकायदा अल्टीमेटम देकर वो क़त्ल किए। इतना धुरंधर जासूस जब दोनों मर्डर केस में पटखनी खा जाता है तब मुझे तो बहुत सुकून मिला क्योंकि 'ट्रेजडी गर्ल' की ज़िन्दगी में उसी के द्वारा राज़ खोल देने पर  सब तरफ़ से दूर हुई ट्रेजडी के बाद नई ट्रेजडी पैदा हो गई। ये कैसी पेशे की वफ़ादारी जो एक थम चुके तूफ़ान को नए रूप में पैदा कर दे? जासूस सुभाष चन्द कौशिक की वजह से 'ट्रेजडी गर्ल' की ज़िन्दगी में आई नई ट्रेजडी का रिवेंज इस हालिया प्रकाशित उपन्यास 'रिवेंज' में तब मिल जाता है जब धुरंधर जासूस होकर भी वह एक नारी के ही समक्ष असहाय हो जाता है और अंत-अंत तक वह उसके सामने अपनी धुरंधरी नहीं झाड़ पाता। मैं जानता हूँ कि जिन पाठकों ने 'ट्रेजडी गर्ल' नहीं पढ़ी होगी वो मामले को उतना नहीं समझ पा रहे होंगे लेकिन यहाँ मैं एक बात क्लीयर कर दूँ कि 'ट्रेजडी गर्ल' और 'रिवेंज' बिल्कुल दो अलग-अलग कहानियाँ हैं और उनका आपस में कोई संबंध नहीं है। मैंने जो बातें लिखी हैं उन पर शायद...हाँ, शायद लेखक महोदय ने भी उस एंगल से नहीं सोचा होगा।

              'रिवेंज' एक ऐसी रहस्य और सस्पेंस वाली कहानी है जिसमें कातिल लगातार हत्याएँ करने का इरादा रखता है। न सिर्फ़ इरादा ही रखता है बल्कि उसे अंजाम देने के लिए बाकायदा भावी मकतूल के घर वालों को पहले से अल्टीमेटम देता है। यही नहीं, बल्कि उसका दुस्साहस इतना है कि बात आन पर आने पर वह यह अल्टीमेटम पुलिस को भी देता है और पुलिस को खुला चैलेंज देता है कि इस मर्डर को पुलिस भी नहीं रोक पाएगी। पूरा महकमा इस संभावित हत्या को रोकने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देता है लेकिन कातिल अपने मकसद में कामयाब हो जाता है। दूसरी बार भी ऐसा ही होता है और कातिल फिर से चैलेंज देकर नया क़त्ल कर देता है। तयशुदा दिन को...! पुलिस के लिए ये एक चैलेंजिंग केस बन जाता है लेकिन मर्डरर का कोई क्लू नहीं मिलता। वो सामने होते हुए भी नहीं होता। उससे भी बड़ी और चैलेंजिंग बात ये होती है कि ये हत्याएँ धुरंधर जासूस सुभाष चन्द कौशिक की मौजूदगी में हो जाती हैं और उसे भी अल्टीमेटम की पूरी जानकारी रहती है लेकिन वह इन घटनाओं को रोक नहीं पाता और उसकी सारी धुरंधरी हवा हो जाती है।

            जो पाठक/पाठिका सुभाष चन्द कौशिक की कार्यक्षमता पर सवालिया निशान लगते और उसकी धुरंधरी के धुर्रे उड़ाती हुई घटनाओं को पढ़ने के तलबगार हैं वो 'रिवेंज' पढ़ें।

           'रिवेंज' में मैना का किरदार बहुत दमदार है और सब पर भारी है, लास्ट के सीन की बात छोड़ दें तो सुभाष चन्द कौशिक पर भी भारी है। इसके अलावा पेज नंबर 142 से 146 तक मैना और उग्रसेन के बीच का प्रसंग और प्रसंगानुकूल शायरी का मेयार पाठकों के लिए उपन्यास में वक्त खपाने की कीमत अदा कर देता है। खास बात यह भी रही कि उपन्यास का एडवेंचर शुरू से लेकर अंत तक कहीं भी कम नहीं होता और पाठक को जल्द-से-जल्द अंत जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। इसके लिए लेखक को विशेष बधाई...👍

               मैं अपनी बातें रखने के वक्त कमियाँ निकालने के लिए भी बदनाम हूँ इसलिए यहाँ भी अपने इस बेतकल्लुफ़ी पर आमादा हुए बग़ैर नहीं रह पाऊंगा। तो अब आते हैं उपन्यास 'रिवेंज' की कमियों पर....

               'ए TEरेरिस्ट' में प्रिंटिंग मिस्टेक न के बराबर था जबकि 'रिवेंज' में ऐसे मिस्टेक्स हैं।

                (1) कथानक की शुरुआत में ही पेज नंबर 7 पर ऊपर की दूसरी लाइन में मोनू की उम्र 14 साल लिखी गई है जबकि पेज नंबर 53 पर 15 वर्ष बताई गई है।

                (2) मोनू के भाई का जगह-जगह पर नाम 'शैलेष' लिखा गया है। मेरे ख़याल से 'शैलेश' सही होगा।

                (3) पेज नंबर 37 पर चेतना, ज्योतिका से पहली बार सुभाष चन्द कौशिक को फोन लगाने को पूछती है और फोन लगाती भी है जबकि आगे पेज नंबर 49 पर पुनः बताया गया है कि चेतना, ज्योतिका के निर्देश पर सुभाष चन्द कौशिक को पहली बार फोन लगाती है।

                (4) पेज नंबर 235 पर लिखा गया है कि मिशन पूर्णतः 'असफल' रहा था जबकि वहाँ मिशन को पूर्णतः 'सफल' रहा था- ये लिखा जाना चाहिए था।

.......और भी कमियाँ हो सकती हैं। मुझे जो याद रहीं, वो लिख दिया ताकि लेखक महोदय इस पर ध्यान देंगे। धन्यवाद....🙏

                                  समीक्षा-   अजीत कुमार शर्मा
                                                  सिवान(बिहार)

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