Friday 28 September 2018

न बैरी न कोई बैगाना- सुरेन्द्र मोहन पाठक

SMP साहब की आत्मकथा की समीक्षा

मैं सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की लेखनी का कायल हूँ। एक कहानीकार के रूप में मेरे मन में उनके लिए अपार सम्मान है। जब यह पता चला कि उनकी जीवनी आ रही है तो अपने प्रिय लेखक के बारे में "और भी बहुत कुछ पढने को मिलेगा" यह संभावनाएं बलवती हो उठी।

मैं भी जानता हूँ की NBNKB की एक प्रति प्राप्त करने के लिए मुझे कितना इंतिजार करना पड़ा। बड़े मनोयोग से इस किताब को पढना आरम्भ किया। एक नहीं दो नहीं तीन बार पढा। परंतु बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि जिस उत्सुकता और जिज्ञासा के साथ इसकी प्रतीक्षा थी, इस पुस्तक ने उतना ही निराश किया।
क्षमा प्रार्थना के साथ कुछ बिंदु रख रहा हूँ।
1. लेखक ने अपनी आत्महत्या को बहुत ही दिलोदिमाग से लिखा है।
2. इस पुस्तक का नाम गलती से गलत रखा गया है।
3. सही नाम "हर कोई बैरी हर कोई बैगाना" होना चाहिए था।
4. इसे आत्मकथा कहना ही गलती है।
5. वास्तव में यह आत्मव्यथा है।
6. जिसमें आधे से भी ज्यादा दूसरों‌ के बारे लिखा गया है।
7. इस खण्ड में तो लेखक ने अपना मूल्यांकन एक चम्मचे के रूप में ही किया है।
8. जो चमचागिरी भी करता है और किसलता भी है।
9. अहसानफरामोशता अत्यधिक मात्रा में दृष्टिगोचर होती है।
10. यह पुस्तक कल्पना से बिलकुल भी नहीं लिखी गयी।
12. बल्कि कलप-कलप कर लिखी गयी है।
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प्रवीण आजाद
दिल्ली, भारत।

(फेसबुक ग्रुप से)

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