Tuesday 21 November 2017

इश्क बकलोल by देवेंन पांडेय

इश्क बकलोल बहुत तारीफ सुनी थी इस बुक के बारे में लेकिन बहुत ही खेद के साथ कहना चाहूंगा कि ये बुक में 32 पेज से आगे न पढ़ पाया 32 पेज तक भी सिर्फ इसलिए खींचा की तारीफ में बहुत कुछ कहा गया था । मुझे लेखक से दो शिकायतें है
1 गाली का प्रयोग बहुत जगह किया गया है । जो म्यूट तो है पर स्पष्ट है ।
2 भाषा - नॉवल पढते वक्त लगा कि मैं कोई भोजपुरी नॉवल पढ़ रहा हूँ हर जगह वही ठेठ भोजपुरी भाषा जिसे समझने में मैं पूरी तरह असफल रहा
सुझाव -----------
मैं हरियाणा से बिलोंग करता हूँ तो मेरी भाषा शैली में हरियाणवी का पुट होना स्वभाविक है लेकिन अगर मैं ठेठ हरियाणवी में लिखने लगूं तो जो हरियाणवी नही जानता उसे बहुत कुछ समझ नही आएगा यही इस नॉवल से मुझे शिकायत रही । लेखक कहीं कहीं भोजपुरी या मराठी का तड़का लगाते तो बहुत अच्छा होता जैसे हमारे एक बहुत ही प्रसिद्ध लेखक करते रहे हैं । और इसी वजह से उन्होंने बहुत मकबूलियत हासिल की लेकिन ठेठ भाषा से मुझ जैसे हर हिन्दी पढने वाले को परेशानी होगी ।

आज तक मैंने जितने भी बुक्स की समीक्षा लिखी वो दिल से लिखी और यहां भी वही कर रहा हूँ कोई विवाद या किसी भी कॉन्ट्रवर्सी में फंसने के लिए नही मुझे जो लगा लिख दिया अगर इस पोस्ट से किसी व्यक्ति विशेष या जाति विशेष की भवनाओं को ठेस पहुंचे तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ
अगर मैं चाहता तो चुपचाप इस बुक को रखकर कोई पोस्ट न करता लेकिन ये मुझे उचित ना लगा कयोंकि लेखक महोदय की पहली बुक मुझे समझ नही आई इसका मतलब ये नही की मैं उनके अगेंस्ट हूँ या उन्हें हतोउत्त्साहित करना चाहता हूं इस पोस्ट का मकसद सिर्फ यही है कि लेखक मुझ जैसे हिन्दी भाषा पढ़ने वाले पाठकों को समझे व भविष्य में आने वाले नॉवल में इस विषय पर गौर करें

धन्यवाद

1 comment:

  1. इस उपन्यास पर कोई समीक्षा बार पढी है।
    शायद लेखक उपन्यास को ज्यादा आंचलिक बना बैठा।
    धन्यवाद।

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